भृंग ज्यों कीट को पलटी,
भृंगी किया आप सम रंग दे - ले उड़ाई !
उक्त कथन के अनुसार गुरु उस भ्रमरी के समान है, जो निरन्तर ध्यान पूर्वक अभ्यास
करवा कर एक कीट को भी अपने समान भ्रमरी बना देता है | उसमें (विद्यार्थी) नई आशा,
नया रंग, उद्भुत शक्ति का स्फुरण हो जाता है | जिस प्रकार नदी-नाले का पानी गंगा
में मिलकर गंगा जल कहाता है उसी प्रकार गुरू अपने सद्-विचार, सद्-आचरण, चरित्र,
देश-भक्ति, श्रद्धा की भावना को विद्यार्थियों में भर कर उसे कर्मयोगी, न्यायकारी
स्वावलंबी बना देता है | यह तब ही सम्भव है, जब गुरू स्वयं गुरू संदीपनी, वाल्मिकी
ऋषि और दण्डी स्वामी विरजानन्द के समकक्ष हो | इन ऋषि गुरूओं ने योगीराज कृष्ण,
मर्यादा पुरुषोतम राम, स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व का निर्माण
किया जिन्होंने भारत की भूमि का गौरव बढ़ाया और इतिहास में अमर हो गये | अध्यापक
केवल अध्यापक ही नहीं वह माता-पिता-सखा है और साथ ही भविष्य-वक्ता और चिकित्सक
(वैद्य) भी है | मैं आशा करता हूँ कि महाविद्यालय में छात्र-अध्यापक उक्त आदर्श को अपने जीवन का अंग बनायेंगे व महाविद्यालय की मधुर
स्मृतियाँ हमेशा उनको प्रेरित करती रहेंगी
Dr. R.P.Gautam